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शनिवार, जुलाई 10, 2010

तेरा गम तुझी से छुपा कर के रोये


तेरा गम तुझी से छुपा कर के रोये 
कभी याद कर के भुला कर के रोये 

जफा उसने हमसे निभाई बहुत थी 
के गैरों से फिर वो वफ़ा कर के रोये 

चरागों से उल्फत रही जब न बाकी 
भरी तीरगी में बुझा कर के रोये 

अयादत मिरी अब करे कौन यारों 
यही गम जेहन में सजा कर के रोये 

है रुसवा बहर और अलफ़ाज़ गीले 
इन्ही पे ग़ज़ल गुनगुना कर के रोये 

यूँ समझा न कोई मेरा हाले-दिल जब 
खुदी हम, खुदी को, सुना कर के रोये 

थे काफ़िर सरीखे तो कुछ वो सही थे 
यूँ सजदा, इबादत, खुदा कर के रोये 

मिरी इल्तिजा थी, जरा देर रुकते 
हुआ ना ये उनसे, जता कर के रोये 

ख्वाबों ख्यालों में रह-रह के आये 
यही इक रही जो खता कर के रोये 

हिजर के ये मेले लगें ना कहीं पर 
यही"राज"सबको दुआ करके रोये 
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Bahar....122 122 122 122

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