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गुरुवार, अक्तूबर 14, 2010

उसपे अब भी मेरा ऐतबार काफी है


उसपे अब भी मेरा ऐतबार काफी है 
इस दिल को भी इंतज़ार काफी है 

मेरे बदन पे ज़ख्मो का सिलसिला 
इश्क में इक यही यादगार काफी है 

ईद और चाँद नज़र आये ना आये 
माशूक का अपनी दीदार काफी है 

ना आज़मा हौसला सितमगर मेरे 
तुझे क्या पता सब्रो-करार काफी है

जफा करके वो भी तो रोया है यारों 
चलो हुआ इतना शर्मसार काफी है

मेरी खातिर अब ऐ चरागारों मेरे 
गम की ये फसल-ए-बहार काफी है 

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