बे-बात पर ही खफा होगा ''राज़''
या शायद भूल गया होगा ''राज़''
नाम का ही तो काफिर था बस
दिल में उसके खुदा होगा ''राज़''
वो शाम छत पे टहल गयी होगी
चाँद सहर तक जगा होगा ''राज़''
हिचकियाँ रात भर आती रहीं यूँ
किसी ने याद किया होगा ''राज़''
चल आईने से ही कुछ जिक्र करें
उसको कुछ तो पता होगा ''राज़''
''आरज़ू'' को सबसे छुपा के रख ले
नजर लगने का शुबहा होगा ''राज़''
बहुत ही शानदार गज़ल्।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल..हरेक शेर मर्मस्पर्शी..
जवाब देंहटाएंबहुत सन्दर गजल!
जवाब देंहटाएंपिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!
yaadon ki aati rahi hichkiyaan
जवाब देंहटाएंyaa raat bhar dil rota raha....
बहुत खूबसूरत गज़ल| धन्यवाद|
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