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रविवार, जनवरी 22, 2012

दर्द जो हद से गुजरा तो आजार बन गया




दर्द जो हद से गुजरा तो आजार बन गया 
और लफ्जों में उतरा तो अशार बन गया 

हमने कही बात तो लोगों को चुभ गयी 
ग़ालिब ने कही वो तो फनकार बन गया 

मैं कह-कह के थक गया के ख्याल मेरे हैं 
नाम उसका फ़साने में किरदार बन गया 

जी हुजूरी की उन्होंने और आगे बढ़ चले 
उसे मुफलिसी मिली जो खुद्दार बन गया 

उसे सच नापसंद था मैं झूठ बोलता रहा 
लो उसके लिए और मैं वफादार बन गया 

आज की लैला से वफ़ा की उम्मीद नहीं है 
कैस भी हवस का ही, तलबगार बन गया 

इस ग़ज़ल में भी ''राज़'' है कुछ नया नहीं 
चलो इक फसाना और यूँ बेकार बन गया

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